उपराष्ट्रपति ने युवाओं को किया प्रेरित, विकासशील भारत के लिए दी प्रेरणादायक सीख
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मानव संसाधन की अपरिहार्यता एक मिथक हैः उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहा, कोई भी जीवित व्यक्ति तब तक आपका सम्मान पाने का हकदार नहीं है, जब तक आप उसमें कोई गुण नहीं देखते हैं
देश की नौकरशाही कोई भी बदलाव ला सकती है, बशर्ते उसका नेतृत्व सही कार्यपालिका करे, जो काम करने में सुगमता प्रदान करे और बाधा न डालेः उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने कहा युवा हमारे सांसदों और प्रतिनिधियों से उनके संवैधानिक कार्य का पालन करवा सकते हैं
आम लोगों ने 10 वर्षों में विकास का स्वाद चखा है, अब उनकी आकांक्षा और बढ़ गई हैः उपराष्ट्रपति
गुरुग्राम/ उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने मास्टर्स यूनियन के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने युवाओं को आत्मनिर्भरता, प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति, और सही नेतृत्व के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने देश में बदलाव लाने में नौकरशाही, युवाओं और कार्यपालिका की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
मानव संसाधन की अपरिहार्यता एक मिथक है
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानव संसाधन की अपरिहार्यता एक मिथक है। उन्होंने स्पष्ट किया, “यह विचार कि किसी के बिना चीजें काम नहीं कर सकतीं, सत्य नहीं है। ईश्वर ने हमारी दीर्घायु और हमारे कार्यकाल की सीमा पहले ही तय कर दी है। इसलिए, किसी को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि वह अपरिहार्य है। यह सोच हमें आत्मविश्वास से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।”
युवाओं से आत्मविश्वास रखने का आह्वान
छात्रों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने युवाओं से स्वयं पर विश्वास करने और गुणों के आधार पर सम्मान देने की अपील की। उन्होंने कहा, "कोई भी व्यक्ति तब तक आपके सम्मान का पात्र नहीं है जब तक आप उसमें कोई गुण न देखें। हमें किसी की चापलूसी या पाखंडी बनने से बचना चाहिए।"
उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि सोच और दृष्टिकोण का विस्तार करना आवश्यक है। उन्होंने कहा, “हमेशा दूसरे के दृष्टिकोण को सुनें। हो सकता है कि आपके विचार सही हों, लेकिन दूसरों की बातों को सुनने से आपको सुधार का अवसर मिल सकता है। यह आत्मनिरीक्षण और प्रगति के लिए आवश्यक है।”
जल्दबाजी में आदर्श मानने की प्रवृत्ति पर आलोचना
उपराष्ट्रपति ने देश में जल्दबाजी में किसी को आदर्श मान लेने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “हम बहुत जल्दी किसी को आदर्श मान लेते हैं, बिना यह जाने कि वह महान क्यों है। हमें सवाल पूछने चाहिए—वह महान नेता क्यों है? वह महान डॉक्टर या वकील क्यों है? यह आदत हमें सच्चाई को समझने और बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगी।”
लोकतंत्र में युवाओं की भूमिका
लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रभावी बनाने में युवाओं की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि युवा सोशल मीडिया के माध्यम से जन प्रतिनिधियों को उनकी संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। उन्होंने कहा, "संविधान सभा में हमारे पूर्वजों ने बहस, संवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से कठिन मुद्दों का समाधान निकाला। आज भी सांसदों और जनप्रतिनिधियों को इसी अनुशासन का पालन करना चाहिए।"
नौकरशाही की क्षमता और कार्यपालिका का महत्व
देश की नौकरशाही को दुनिया में सबसे सक्षम बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत की नौकरशाही किसी भी बदलाव को ला सकती है, बशर्ते उसे सही कार्यपालिका का नेतृत्व मिले। एक ऐसी कार्यपालिका जो काम करने में सुगमता प्रदान करे और बाधा न डाले।”
उन्होंने नौकरशाही के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारे पास उत्कृष्ट मानव संसाधन हैं। अगर इनका सही उपयोग किया जाए, तो यह देश की प्रगति को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
भारत के आर्थिक विकास और लोगों की अपेक्षाएं
पिछले एक दशक में भारत में हुए आर्थिक विकास का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आम लोगों ने विकास का स्वाद चखा है और अब उनकी आकांक्षाएं और बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा, “पिछले 10 वर्षों में 50 करोड़ लोग बैंकिंग प्रणाली में शामिल हुए हैं। 17 करोड़ परिवारों को गैस कनेक्शन मिला है, और 12 करोड़ घरों में शौचालय बनाए गए हैं। अब लोगों की अपेक्षाएं तेजी से बढ़ रही हैं।”
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन यदि 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो हमें अपनी आय को आठ गुना बढ़ाना होगा। उन्होंने युवाओं को इस चुनौती को स्वीकार करने और नए विचारों के साथ समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया।
वंशवाद और विचार की शक्ति पर जोर
वंशवाद को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, "आज आपको व्यापार करने के लिए वंश, पारिवारिक पूंजी, या परिवार के नाम की आवश्यकता नहीं है। आपको केवल एक विचार की आवश्यकता है। विचार किसी का विशेषाधिकार नहीं है।" उन्होंने कहा कि लोकतंत्र ने राजनीति को लोकतांत्रिक बना दिया है और अब यह व्यापारिक, औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में भी समान रूप से लागू होना चाहिए।
युवाओं के लिए संदेश
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहा कि वे शासन के सबसे प्रभावशाली हितधारक हैं। उन्होंने कहा, “आप विकास के इंजन हैं। अगर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो आपको लीक से हटकर सोचना होगा। भारत ने पिछले एक दशक में स्थिर विकास किया है और अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे अगले स्तर तक ले जाएं।”
समारोह में गणमान्य लोगों की उपस्थिति
इस कार्यक्रम में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री अशोक कुमार मित्तल, मास्टर्स यूनियन के संस्थापक श्री प्रथम मित्तल, और बोर्ड के सदस्य श्री विवेक गंभीर सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति के संबोधन ने युवाओं को प्रेरित किया और उन्हें देश की प्रगति में अपनी भूमिका को समझने का संदेश दिया। उनकी बातें आत्मविश्वास, नेतृत्व और विचारशीलता के महत्व को रेखांकित करती हैं। यह संबोधन न केवल युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक संदेश था, बल्कि भारत के उज्जवल भविष्य की दिशा में एक मार्गदर्शक भी।